क्या मैं रुक सकता हु 

-Sarthak Malkhede, FYBSc

    आज एक लम्हा ठहरकर , मैंने खुदसे पूछा की ,

    क्या मतलब है मेरे बस चलते रहने का ?

    क्या मैं कुछ घड़ी खुदके लिए रुक सकता हु ?

    मैं आने वाले कल में , खुशियां तलाशने वाला ,

    क्या इस पल को जी सकता हु ?

    समाज के कायदों से बंधा हुआ मैं ,

    क्या ये जंजीर तोड़ आजाद उड़ सकता हु ?

    मैं दुनियादारी में ढला हुआ ,

    क्या वापस से खुदको पा सकता हु ?

    अपने चेहरे से नकाब हटाकर अब ,

    क्या खुदके रंगों में रंग सकता हु ?

    जो फैसले थे अंजाम किसी और की चाहत के ,

    क्या उन्हे बदल कर , नई शुरवात कर सकता हु ?

    क्या मैं अपनी मन की बातों को आवाज दे सकता हु ,

    क्या मैं नया आगाज कर सकता हु ?

    युही आज खुदसे पूछा मैने !!

    Source :- shutterstock 

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